Poem – Migrant Labourers

तब ,  
मज़दूर हालात ने बनाया था ... 
आज ,
मजबूर सरकार ने बना दिया ... 
मैं तो निकला था पैदल अपने घर के लिए “हर्ष “....
 मुझे ,
 इतना मशहूर अख़बार ने बना दिया ...
आजकल मुझे , मेरे साथियों  को सब “प्रवासी” कहते है ...
जबकि हम सब  तो इसी देश में रेहते है ....
मेहनतकश आदमी हूँ .. यूँ माँग कर बैठे बिठाए खाया नहीं जाता ....
और दो रोटी के देकर , तस्वीर दस खिंचाते है लोग , अब और शरम से सर झुकाया नहीं जाता ...
मैंने सुना है , 
दूरदर्शन पर आज कल सिर्फ़ मेरे चर्चे है ....
वो कहते है ,
लाखों करोड़ों सरकार ने मेरे राशन के लिए खर्चे है ...
अब नजाने किसने वो आटा गूँधा , किसने उसकी रोटी खाई ...
राजनीति की अवज में कयी दिनो से भूखे ,मेरे बच्चे  है ....

Efforts by – Harsh Sharma

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